Monday, April 15, 2024

मेरा मौसम...


मेरा मौसम 
आज भीगा सा है 
गीला नहीं, क्यूँकि
भीगाना अपनी रहमतों से
तो भगवान की रीत है
गीला तो हम
ख़ुद को और अपने आसपास
अपने गिलों और शिकवों से 
करते हैं ।

Sunday, February 25, 2024

ज़िंदगी और मैं

​ज़िंदगी बह रही है

और ज़िंदगी संग मैं 

कि बाबा तुम्हारे उपरांत 

तैरने को परे तज

मैंने बहना सीख लिया है।

मुअम्मा

मुअम्मा है - 

ज़िंदगी की करवटें 

ये उतर चढ़ाव

भावनाओं की सलवटें

किसने की मुअइयन?

ये हमारे दाव पेंच थे 

या क़दर की थी पटखन 

जिसने ज़िंदगी को 

पेचीदा बना डाला?

मेरे दोस्त

इस बिखरी बदलती दुनिया में - 

कई साथ मिला

कुछ बिछड़ गए

पर रब रैन ढले 

जो मनन किया 

दिल के तहों ने 

नाज़ किया 

नित रोज़ बदलते रिश्तों में 

प्रीत अनूठी पाकीज़ा

तेरीं क़ुदरत के अनमोल रतन 

मेरे दोस्त बड़े ही अच्छे हैं 

Friday, March 24, 2023

Insight

This heart broke

Many a time

And through crack

When light seeped in thru - 

I sensed You ❤️

रहगुज़र

मेरी ज़िंदगी रहगुज़र रही
खून के रिश्तों से बढ़ 
दिल के रिश्तों तक का सफ़र 
ख़िज़ाँ मिली और बहार भी 
जो एक क़ायम सूतूँ था 
वो वही तो था 
बस वही तो था 
रब मेरा मुश्किल कुशा
परवरदिगारे दो जहां -
जब जब शमा बुझ कर जली
मौजूद थी सिर्फ़ तजल्ली तेरी।

Monday, January 02, 2023

New Year

The new year has begun on a cynical note being dropped by friends and family - so what if a new year has started, nothing has changed as a matter of fact. Here are a couple that triggered my muse.


नया साल 

इस नये साल में सुर्ख़ाब का पर कौन सा है 
साल बदला है पर अहवाल नहीं बदला है 
वही बातें, वही क़िस्से, वही आशफ़तासरी 
न उमंगें न तरंगें 
तरो ताज़ा नहीं इस क़ौम का अहवाल मियाँ 
दिल पुराने हैं तो फिर कैसा नया साल मियाँ 
ज़िंदा क़ौमें 
नये सूरज में सेहत देखती हैं 
क्या ख़बर हम को कि ये रंगे सेहर कौन सा है 
इस नये साल में सुर्ख़ाब का पर कौन सा है 
साल बदला है पर अहवाल नहीं बदला है 😀😀😀

Poet is Dr Hilal Naqvi

My consciousness chooses to side with optimism though.

New year
New era 
New countdown -
Of resolves 
Promises - some broken 
Healed wound(s)
Renewed perspective 
Body that's worn 
Out and out 
Yet heart that's in yearn
Let me try again 
The best in me is yet to be born. 

Tuesday, October 25, 2022

फ़रमाइश

जब रूह मेरी जुदा हो
जिस्म बेजान हो पड़ा हो
मेरे बच्चों संभाल लेना 
मेरी बेजान काया 
बड़े सब्र से है निभाया
साथ इसने जीवनी की 
हर रहगुज़र पर।

तन को नहा के सुथरा 
सफ़ेदी से ढाँप देना
इस रंग को था अपनाया
मेरे मन ने व्यथा में
यूँ दामन में रंग कई सिमटे
उत्सुकता ने निहारा 
पर सुकून हुआ मुयसर
फ़क़त चाँदनी की 
श्वेत रिदा में। 

फिर उस जमीं को सौंपना 
जिस के अहसास में तरी हो
मज़बूत पेड़ के साये 
लिपटे रहें कब्र से 
फूलों के हुस्नो बू से
मेरी फ़िजा सजा देना 
यूँकि परवाजते परिंदों 
को बेसाख़्ता ख़बर हो 
कि रब की क़दरो रजा से
जो बस्ती है याँ सबीना 
हर दिल को ये यक़ीं हो
मुहब्बतों वफ़ा का पैकर रही
वो दम भर
सो सहां रब की अमां है
चहकें वो ये कह कि -
आओ थोड़ा थम लें 
दम लें और गुफ्तगू कर
बेलौस मुहब्बत से
दिलों जाम भर लें


18.7.17

Monday, October 17, 2022

I am

I am 
A point in time
In space I exist
As wave
Traversing the crest 
And trough
I dive and surface 
To find meaning.

Saturday, October 08, 2022

ठान

साहिल पर पलटती लहरों के संग
पैरों तले 
रेत खिसक रही थी 
और मैं बस ठान खड़ी थी
स्थिर चाहे ना सही 
मेरी भूमि तो यही है.

This was jotted down on the shores of Arabian Sea on 3rd December 2012. Much water has crossed under the bridge.