Sunday, March 23, 2014

अकेले कहाँ हैं हम तुम?

अकेले कहाँ हैं हम तुम
हर रूह के साथ
इक भीड़ जुटती है
कुछ ख़्वाब कुछ ख़्याल
तोड़ते मरोड़ते 
बस यूंहीं से सवाल
इस सरकते कारवाँ में
अकेले कहाँ हैं हम तुम? -
तनहाई बस ख्वामख्वाह 
पैरों से लिपटती है ।

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