Don't want to elaborate on the pain that I felt. It was inevitable.
हर साँस अभी पूछ रही है -
Hurt हो ?
और ख़ुद से ख़ुद को
क्या झुठलाना ?
हाँ हैं।
हैं तब भी,
जबकि पता भी है
मेरी नियति है यही
प्यार देना तो सिखलाया तुमने
भरपूर, पर
लेन देन की परंपरा उल्लेखते
भूल गये तुम ये तौर
देने के साथ
लेन की भी पारी है;
पास पड़ी थी
मेरे नाम की पर्ची
पर मेरी नियति
तुम बिसरा गये!
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