Thursday, September 05, 2024

Ghar wapsi


I don't know what's right, what's wrong. I know well that human love is not valued in Your Books. So I've literally dragged impulsive, yelling, yearning Sabina away from cravings of her heart. Om Shanti. 

May the headstrong, ziddi Sabina get Your hard-to-get acceptance.


Totally drained!


And there is no melodrama here. 


उफ़ 

तलात्तूम था तलात्तूम!


चक्रों का युद्ध था 

और चक्रव्यूह में फँसी मैं

मूल की जड़े कमज़ोर

स्वाधिष्ठान उन रसों की चाशनी 

को ललायित  

जिन से सदा ज़िंदगी महरूम रही 

आक्रोश भरा जलता मनीपुरा

कोई तर्क विचार को 

खड़ा तैयार नहीं 

हृदय था घायल 

आहत अनाहत, डग मग

पग मग

मूक खड़ा था मुँह निहारे

ये अस्मंजस -

जाने किस ओर मेरा मनन ढहे 

विशुद्ध बंद 

आज्ञा निरस्त्र

जाने किस राह का 

मानस आत्मा चयन करे?


हाथ पड़ी तब 

गीता की कॉपी 

मौक़े से मेरी ढाल बनी -

चुनो वही जिस में भला हो सबका

चाहे स्वयं आहुति, बली चढ़े

दुर्बलता का यहाँ ठौर नहीं 

सहस्र के ज्योतिरपुंज ने समझाया 

दिल के बल्ब सब खोल दिये

सच बस ये अपना आना जाना 

आजन्म तामरण मिलन के 

चलते  यहाँ कोई game नहीं;

मिले दो पल हम तुम 

ये कहाँ कैसे कुछ कम?

दीया दूर जले तो सब का बाती

छिन भिन्न छिन भिन्न 

उसकी किरणें 

भर पातीं मेरी भी पाती  ...


माना मैंने - 

प्यार नहीं है उसका मेरा 

यह तो वो सुंदर स्वरूप 

सृष्टि को शृंगार है जिस से

निखरा बिखरा चंचल प्रतिरूप   

नियति ने ढाला जो कुछ 

हूँ कृतज्ञ

मेरे प्याले आया  उस नूर  का नूर; 

इस की रोशनी ले आँचल में 

प्रसाद स्वाद से अंतर को कर पुर 

श्रद्धा, सम्मान और आदर से    

सुनो मन -

फिर से मैंने 

अपनी सूनी धुनी रमा ली.

 🙏🏼

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