Monday, February 27, 2012

grope of blind

eyes failed to see
for years
nor did they hear
my ears
they were deaf to
calls of sanity
for the ardour
pushed and i pursued
heedless and blind
till out of breath
with utter indignity
and wee bit of faith
i closed eyes
to silence mind
heaved a sigh
- there I found
with eternity at last
the transient connected!


Wednesday, February 15, 2012

jeevan raas

मीठी है
नहीं नहीं इस में तो नमक
का मज़ा है
क्या कहा तुमने -
इस में मदमस्त नशा है?
पर कल तो इस में
कसेलापन घुला था
और जब उसने चखा -
कहा ये क्या मिसरी
का ढ़ेला है?

हाँ पर हर ने ससहमति
सुर मेल भरपूर कहा कि
आज कल और हर हर रोज़:
अभी जीए कहाँ,
बस मात्र रस तो चखा है -
प्रभु कुछ और मिले
फिर लगे ज़रा
कुछ रास मिला
हाँ तेरा जीव जिया है.