Sunday, February 25, 2024

ज़िंदगी और मैं

​ज़िंदगी बह रही है

और ज़िंदगी संग मैं 

कि बाबा तुम्हारे उपरांत 

तैरने को परे तज

मैंने बहना सीख लिया है।

मुअम्मा

मुअम्मा है - 

ज़िंदगी की करवटें 

ये उतर चढ़ाव

भावनाओं की सलवटें

किसने की मुअइयन?

ये हमारे दाव पेंच थे 

या क़दर की थी पटखन 

जिसने ज़िंदगी को 

पेचीदा बना डाला?

मेरे दोस्त

इस बिखरी बदलती दुनिया में - 

कई साथ मिला

कुछ बिछड़ गए

पर रब रैन ढले 

जो मनन किया 

दिल के तहों ने 

नाज़ किया 

नित रोज़ बदलते रिश्तों में 

प्रीत अनूठी पाकीज़ा

तेरीं क़ुदरत के अनमोल रतन 

मेरे दोस्त बड़े ही अच्छे हैं