Tuesday, April 23, 2024

मैं और मेरी रचना


लगन हुआ एक बार
प्यार भी रहा इकलौता 
हुआ इक ही बार
दोस्त -
बस याराना ही 
सोभा सहा है हमें 
सो हम हैं कर पाये 
ये बारम्बार, 
सो रहने दें 
अपने बेजा 
ताने बाने 
के वार;
ऐसे ही बनाया 
हैं विधि विधाता 
के निज़ाम 
और अपनी ये रचना 
आप को हो ना हो 
मुझे है 
तहे दिल से स्वीकार ।

Bhumi Divas

 सुबह टहलते मज़बूत पेड़ के तनों को देखा तो ये ख़याल आया। और लगा के 'old fashioned' cultural traditions ऐसे ही हमारी संस्कृति सम्भाले हुए हैं। दोनों को बचाना ज़रूरी है।


कल दिन था पृथ्वी का

और मेरी नज़र सोख रही थी
स्थिरता पेड़ों की
जो इर्द गिर्द ज़मीन पे 
ख़ुद को जमाये 
अड़े खड़े थे 
अपने कर्म पथ पे।

जड़ें वृद्ध वृक्ष की 
संयम से डटी
समय पर पकड़ लिए
जीवन दामिनी 
साँस फूँक रही 
वसुंधरा को 
वनसंहार के बावजूद
प्रलय प्रकोप से परे घसीटती 
धरती को 
बस वैसे ही 
जैसे वृद्धा दादी
अपने परिवार को 
रूढ़िबादी कहलाती 
फिर भी
परंपराओं के आँचल में 
सिमटाती रहती 
अपने अनथक प्रयास से 
अपने परिवार को 
यूँकि कहीं
आधुनिकता की बाढ़
ना उजाड़ फेंके कहीं संस्कार  
वो जो आत्मा को मानवता की 
तरफ़ कर अग्रसर
परिपक्वता से 
अमन की चादर 
घर बाहर 
पसराते हैं।

इन झुर्रियों ने यूँही 
चढ़ाव उतार नहीं देखा 
वक़्त का
और ना ही इस पेड़ ने -
यक़ीनन इन ने
कई करवटें ताकीं है 
क़ुदरत के काल की
जिन झलकी में है असर 
नर और वन संहार संग
पौरुष का प्रकृति प्रति 
मृदु व्यवहार की।


Monday, April 15, 2024

मेरा मौसम...


मेरा मौसम 
आज भीगा सा है 
गीला नहीं, क्यूँकि
भीगाना अपनी रहमतों से
तो भगवान की रीत है
गीला तो हम
ख़ुद को और अपने आसपास
अपने गिलों और शिकवों से 
करते हैं ।

Sunday, February 25, 2024

ज़िंदगी और मैं

​ज़िंदगी बह रही है

और ज़िंदगी संग मैं 

कि बाबा तुम्हारे उपरांत 

तैरने को परे तज

मैंने बहना सीख लिया है।

मुअम्मा

मुअम्मा है - 

ज़िंदगी की करवटें 

ये उतर चढ़ाव

भावनाओं की सलवटें

किसने की मुअइयन?

ये हमारे दाव पेंच थे 

या क़दर की थी पटखन 

जिसने ज़िंदगी को 

पेचीदा बना डाला?

मेरे दोस्त

इस बिखरी बदलती दुनिया में - 

कई साथ मिला

कुछ बिछड़ गए

पर रब रैन ढले 

जो मनन किया 

दिल के तहों ने 

नाज़ किया 

नित रोज़ बदलते रिश्तों में 

प्रीत अनूठी पाकीज़ा

तेरीं क़ुदरत के अनमोल रतन 

मेरे दोस्त बड़े ही अच्छे हैं