Tuesday, March 29, 2016

Sanjeev Jaiswal

किनारों की रेत पर बैठे लोग
सब मुड़ एक ही दिशा में देखते हैं-
वो ज़मीन की तरफ़ पीठ मोड़
सारा दिन केवल समुंद्र को ही तकते हैं।

जितना भी समय लगे गुज़रने में
समुद्री जहाज़ अपने आकार को ऊँचा उठाये ही बढ़ता है
जबकि गीली धरती बहुत सही तो सिर्फ़
अपने ऊपर ठहरे परिन्दे को ही प्रतिबिम्बित कर सकती है।

धरा में बहुरूप प्रदर्शित तो हैं सही ज़रूर
मगर सच जो भी हो - 
पानी हमेशा ही किनारों पर आ पाता है
और लोग भी सदा सागर को ही तकते हैं।

चाहे दूर तलक ना देख सकें
चाहे गहराइयों में ना झाँक सकें
मगर कब कभी ये कोई है बाँध सका
कि उनकी आँखें किस दृश्य पे दृष्टि रखती है।

Translated for Robert Frost as a gift to Dr Sanjeev Jaiswal. Thanks for asking. Let your heart find your own meaning in this. Sabina