Saturday, December 31, 2016

भूले भटके से हुई भूल को माफ़ी दे दो
नादनिस्ता हुई हक़तल्फ़ी की तलाफ़ी कर दो
रखी है अब तलक नामुकम्मल से उम्मीदे तकमील
अब के बरस या रब 
मुझे अपनी क़ुदरत से मुकम्मल कर दो.

Tuesday, December 27, 2016

चलो सच है -
गुनाह हुआ हम से
वक़्त की उन्ही परछाईंयों से
तो जूझते बढ़ रहे हैं हम
उस ठौर जहाँ से पलटने
की उम्मीद नहीं
कोशिश यही रही कि
तुम रहो और तुम्हारे रहें
और तुम से बिछड़े हम
ना ख़ुद रहें
ना ख़ुदी से आशना रहें हम।

Sunday, December 25, 2016

How do I live 
Beyond this knowing of my heart
That I love you
And wish no other but to rest 
Against the beatings of your heart?


Ek aur din guzra hai
Andhere mein
Roshni ka suragh kahi bhi nahin
Dil ko phir bhi hai yaqeen
Hai raat to hogi
Is safar mein
Subah bhi namudaar kahin na kahin
तुम ने बरसों पहले अलमारी में झाँकने की ज़िद की थी
अब के बरस हम ने दिल चीर के
तुम को हर कोना बिना तलाशी वॉरंट दिखलाया तो क्या हासिल?
ना तुम बदले
ना तुम्हारा अहसास
हर ज़ख़्म मेरा तुम्हारी मूसर्रत का सामान था -
मरहम तो दूर रहा,
मजबूरी तुम्हारी मुहब्बत का नया नाम बना!

Saturday, December 24, 2016

ऐ दिल पलट जा 🙏🏼

ना उसके लब हिले
ना लफ़जो ने कुछ कहा
जिस्म की एक ज़ुबान थी
जिसे रूह ने बरबस ही सुन लिया
पास खड़ी अर्द्धांगिनी
के अधरों पे सजी यूँ
गर्व भरी मुस्कान थी
जैसे हो पूछती मैं कौन
बिना अधिकार
आख़िर क्यूँ हुँ खड़ी वहाँ?
साथ वो है, साथी वही
जिसे उसने है चुना -
लफ़जों की अब
कोई गुंजाइश यहाँ कहाँ?

Experiencing 1990-1992 all over again!

वो हर रहगुज़र पर
बिन बात ही आँसू की बरसात
फिर आँखें पोंछ चल पड़ना
तनहा ज़िंदगी के साथ
फिर जी रहें हैं हम
वही लम्हात!






One among many laws
Enunciated to define life and Universe
There's one that overrules all -
It is the rule of Love
In love you don't let
Beloved fail or fall.

So when love is basis
For Your call
When times are good
Through summer and season of spring
Then if my ways are lost
Lights around seems darker than dim
Don't leave it on me
It won't be my share
To retrace steps,
Wander far or near
To seek and find
To move beyond doubts and fear.
Instead I'll refuse to budge
I'll pin my hope
On faith and trust
Will dig heels to ground in
To stay still
Just be there until -
You come to find me.

Friday, December 23, 2016

मेरा इश्क़ जुदा है
तुम्हारी मुहब्बत से हुज़ूर
जहाँ नाप तौल कर
इकरार और
इज़हारे वफ़ा होता है!
प्यार पे अब तक तो हम ने 
ख़ूब गिरह बांधे है
कि छूटे हाथ से लगाम 
तो उम्मीदें हो जाएँ बेहिसाब दराज़;

मेरे कूचे में ना वो हैं 
ना किसी आहट से होता है  
उनके पास आने का अन्दाज़,
कभी मिले भी परछाइयों में  
तो बहानो से मेरे जज़्बातों को 
कुछ और लूट लिया!

फिर भी क्या करूँ -
खलक से पहले किए 
वादे को वफ़ा करना है
प्यार उस से मुझे है
उसको मुझसे उल्फ़त हो कि ना हो।

जब महबूब ही ने मेरे हक़ को
समझने का हक़ ही ना लिया 
तो राह मेरी है ये -
चाहे सदियां ही सही 
तनहा मुझको ही सफ़र करना है!

Heeding heart's tune

I love you
You say
You love me too
So this time -
Let's do it my way.

You reach out
I will be still
You feel
I won't freeze
As you see
I will melt
You will smell
Abandonment of dancing feet
You'll sense
How with ease
I'll release
Without stifle
You'll hear me sigh
When I dissolve
With your breath
I'll diffuse
I will let go
Every doubt and every fear
That unrests my Achilles heel
And keep captive
My in-love soul.

When you touch
I will bloom
Shedding shadows of gloom
Without restraint
I'll express
With every cell
That pines
To home in
With my soulmate.

It's been too long
It's been a while
For now once
And for all
I dare to play
With the hum of heart
It so ardently calls
To live once more
In yearn to belong
I'm finally
Tuning in
To my heart's
Rhythm and song ❤



Thursday, November 03, 2016

चेहरे की चंद लकीरों में
अंकित है दास्ताँ
ग़ुस्ताख़ हाथ की लकीरों से
जो चल पड़ी थी 
तक़दीर की ज़ुबाँ ।

Wednesday, July 27, 2016

दर्द दस्तूर है दिलवालों का
ज़ख़्म खा के मरहम लगते हैं
हम तनहा उनके ख़यालों का!

कभी कभी लफ़्ज़ बेफ़ज़ूल होते हैं
ख़ामोशियों से भी अक्सर उनके पलट जाने के 
पैयाम दिल के दरवाज़ों पर
बिन दस्तक ही मोसुल होते हैं।


Friday, July 15, 2016

उसने कहा -
सुना है बारिश है तुम्हारे शहर में
ज़्यादा भीगना मत
धूल गयी सारी ग़लतफ़हमिया अगर
बहुत याद आएँगे हम।

तो फिर उस ने सुना -
यार जो बारिश से ग़लतफ़हमी धुलने की मोहताज हो
मेरे आँगन में नहीं उगती
हम ने शाम-ए-उलफ़त जलायी थी यहाँ 
रहमते ख़ुदा के चिराग़ों से लौ ले कर!

मेरा सच

मिलन बिछड़ के इस ड्रामा गेम में
शिकवे-शिकायतों, कहा-सुनी के अनंत सिलसिलों में
बस एक सत्य सुनिश्चित रहा -
तुम मेरे युसूफ़ हो।

Monday, July 11, 2016

Lo and behold
Bear witness - 
I've laid the wreathe again.

Monday, July 04, 2016

बहुत मंहगा है तुम्हारा सीना
निस दिन स्वाभिमान की सौग़ात माँगता है 
और अब जो ये पूँजी नहीं बाक़ी -
मैं फिर कोरे काँटों पे सो लूँगी।

Sunday, July 03, 2016

क्या यही प्यार है?

चला रफ़ाक़तों का जो सिलसिला
हमने मोहब्बतों की बात की
मेरे लब खुले तो उनके सिले
महबूब ख़ामोशियों में डूब गया
ख़ौफ़े विस्ल दिल को कुछ यूँ चढ़ा -
जो आशना था बना मेरा 
नाआशना सा हो गया!

Wednesday, May 04, 2016

देखो हो लुप्त
ठहरी हूँ अंधेरों में
इस तर्क पर आस पसारे 
कि हर ज़िंदगी का बस एक ही ठिकाना है
तो कहाँ से आयी हूँ 
किस ठौर को जाना है
लापता है मेरी रूह
सो तुम्हें ही तो मार्ग दर्शाना है
वो भी कुछ इस तरह 
कि आँसू और हँसी कि होड़ कुश्ती ना हो
साँस कुछ यूँ चले रब
कि अपनी प्रवृति से खुदी अजनबी ना हो
दो होंसला कि डगमग सी बढ़ूँ सही
राह मगर तुम्हारी रोशनी से प्रदर्शित तो हो.



बहुरूप मेहफ़िलों में कुछ यूँ 
है बिन सज के बसे हम 
कि स्वरूप ही 
मेरा मुखोटा दिखता है 
नज़रें ढूँढती है कुछ अपनापन चेहरों में
यहाँ हर शख़्स मगर 
मुझे अनजान नज़रों से तकता है
फ़िक्र ये है कि परदेसी बन 
फिर ब्याबान राहों पे जा निकलू
या ख़ुद को भी मुखोटा तान  
अपनों की पहचाँ की नज़र कर दूँ?

दिल का कलर

नीले आसमान पे
गहरे मँडराते बादलों के झरोके से
मन के भीतर झाँका तो 
उस ने बेसाख़ता कहा
राही छूटते टूटते धरौंदों का 
ग़म न कर
तारिकियों में सिसकियों और आह से 
दम ना भर
गुज़रते वक़त के छींटों से
धूमिल पड़ता है, पर कहाँ बदलता है 
क़ुदरत का दिया कलर? 
मेरा दिल तो है अब भी गुलाबी

Tuesday, March 29, 2016

Sanjeev Jaiswal

किनारों की रेत पर बैठे लोग
सब मुड़ एक ही दिशा में देखते हैं-
वो ज़मीन की तरफ़ पीठ मोड़
सारा दिन केवल समुंद्र को ही तकते हैं।

जितना भी समय लगे गुज़रने में
समुद्री जहाज़ अपने आकार को ऊँचा उठाये ही बढ़ता है
जबकि गीली धरती बहुत सही तो सिर्फ़
अपने ऊपर ठहरे परिन्दे को ही प्रतिबिम्बित कर सकती है।

धरा में बहुरूप प्रदर्शित तो हैं सही ज़रूर
मगर सच जो भी हो - 
पानी हमेशा ही किनारों पर आ पाता है
और लोग भी सदा सागर को ही तकते हैं।

चाहे दूर तलक ना देख सकें
चाहे गहराइयों में ना झाँक सकें
मगर कब कभी ये कोई है बाँध सका
कि उनकी आँखें किस दृश्य पे दृष्टि रखती है।

Translated for Robert Frost as a gift to Dr Sanjeev Jaiswal. Thanks for asking. Let your heart find your own meaning in this. Sabina