Saturday, July 30, 2022

रूह का अन्नदाता

साल लगे कई

फिर जा समझी लाल लहू का 

शेष यौवन प्रहर ही हो जाता है।

साँझ ढ़ले तो केवल 

मीतों का गीत ही भाता है।

दर्द दिया लेकिन साझे को 

दोस्त के दिल को बढ़ा दिया -

विधि अद्भुत प्रेम पंच की

विधाता तू ही -

मेरी रूह का अन्नदाता है । 




तनहाई


My nephew was here to visit. His spontaneous comment over chit chat and snacks was - कितना सन्नाटा है यहाँ". I was surprised because all I had felt was profound peace and company of thoughts and nature. I was in bliss that others were oblivious to.
तनहाई ख़ामोश कहाँ - 

बड़ा बोलती है;

बरसों दबी हसरतों की ज़ुबाँरूह में रस घोलती है

ना तौलती. ना परखती

ना तू तड़ाक के तेवर

चले आते है कभी बरबसभूली बिसरी यादों के गहवर

उस पल जब स्वयं से स्वयं 'हम कौन हैं' - से प्रश्न लिए मानो, आत्मा 

अपने ही वजूद का पता पूछती है।

या फिर कभी अपनी लौ सजातनहाई मनस के पृष्ठ परझिलमिलाते ख़्वाबों के परवाज़ की दिशा ढूँढती है ...

हाँ सच.मेरी तनहाई बड़ा बोलती है।