कितना तोड़ती मरोड़ती है
झकझोरती खाखोरती है
फैलती फिर सिकोड़ती
भी है
ये जीवन की पाठशाला
केवल इतना बतलाने को
की जीवनधार में
प्रवाहित हैं कई, पर मानस
बस अकेला है.
झकझोरती खाखोरती है
फैलती फिर सिकोड़ती
भी है
ये जीवन की पाठशाला
केवल इतना बतलाने को
की जीवनधार में
प्रवाहित हैं कई, पर मानस
बस अकेला है.
1 comment:
wow...jeevan ki paathshala...short yet said deeply.:)
Post a Comment