बस धुंआ सी
रह गयी है ज़िन्दगी
धुंधली गंदली है नज़र
धूमिल है हर आवाज़
जो उम्मीद को
तकती पुकारती है
भरपूर जीने की आस मेरी
अब सचमुच समूची
थक चुकी है.
रह गयी है ज़िन्दगी
धुंधली गंदली है नज़र
धूमिल है हर आवाज़
जो उम्मीद को
तकती पुकारती है
भरपूर जीने की आस मेरी
अब सचमुच समूची
थक चुकी है.
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