Wednesday, November 23, 2011

बस धुंआ सी
रह गयी है ज़िन्दगी
धुंधली गंदली है नज़र
धूमिल है हर आवाज़
जो उम्मीद को
तकती पुकारती है
भरपूर जीने की आस मेरी
अब सचमुच समूची
थक चुकी है.

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