जीवन की लटाई
अब लपेटने पे आई
तो मन की पतंग इठलाई
हो बेकल वो चिल्लाई
.....अर्रर कोई काट मेरी डोर
कि मैं अब सविभोर
उडू बादलों के संग
बिना ढील बिना पेंच
फिरूं चहु ओर बिना हेंच
जाऊं क्षितिज से मैं मिल
पहने इन्द्रधनुषी रंग
रासूं स्वंत्रता की उमंग।
अब लपेटने पे आई
तो मन की पतंग इठलाई
हो बेकल वो चिल्लाई
.....अर्रर कोई काट मेरी डोर
कि मैं अब सविभोर
उडू बादलों के संग
बिना ढील बिना पेंच
फिरूं चहु ओर बिना हेंच
जाऊं क्षितिज से मैं मिल
पहने इन्द्रधनुषी रंग
रासूं स्वंत्रता की उमंग।
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