अकेलेपन क़ा स्वाद
स्वादिष्ठ है यूँ क़ि
विराजमान हो मन में
अब केवल तुम
जिस के परे न खींच सकें हैं यहाँ
कोई नर या नरेंद्र
वासना या दर्द की लकीरें
असत प्रीत के नाम पर -
तो सम्भालो मुझे इस पल
की मुझे समतल
धरती की तलाश है
जहाँ भावनाओं के उतार चढाओ
की बाधा रुकावट न बने.
स्वादिष्ठ है यूँ क़ि
विराजमान हो मन में
अब केवल तुम
जिस के परे न खींच सकें हैं यहाँ
कोई नर या नरेंद्र
वासना या दर्द की लकीरें
असत प्रीत के नाम पर -
तो सम्भालो मुझे इस पल
की मुझे समतल
धरती की तलाश है
जहाँ भावनाओं के उतार चढाओ
की बाधा रुकावट न बने.
No comments:
Post a Comment