Monday, December 15, 2014

दिल ने कई बार
तुम्हें ज़िंदगी से मिलवाया है
कभी हँसी से
कभी मुस्कुराहटों से 
दो चार करवाया है
वो ना होता तो ज़िंदगी से गले 
तुम क्या ख़ाक मिलते
तुम्हारी तन्हाईयां उस की 
धकधक से सदा गुलज़ार बनी
कई ऊँचाइयों को
इसी धड़कन ने सर करवाया है
तो आज इतनी आसानी  से
क्यूँ दामन झटक यूँ मूंह मोड़ चले
इक तो वक़्त संगदिल ठहरा
और तुम भी चिरागों को बुझा छोड़ चले?
थोड़ा ठहरो मेरे दोस्त
सुनो ज़ौक़े तक़ाज़ा ये है -
प्यार में रूठने मनाने की
अदा बाक़ी रहे
कल तुम रूठे पिभरे थे
दिल ने था साथ दिया 
आज मनाने की तुम्हारी बारी है
रूठा दिल है अपने दिलबर से 
है तव्वजह  का तलबगार बना
हक़ है उसका, बहला लो ज़रा
आख़िर दिल अपना ही तो है
और वो तो बच्चा है जी
साथ बैठो उसे वक़्त के अंधेरों
से कहीं डर  न लगे
प्यार की लौ को हवा दो
कि बेवक़्त कहीं सर्द न पड़े। 


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