साल लगे कई
फिर जा समझी लाल लहू का
शेष यौवन प्रहर ही हो जाता है।
साँझ ढ़ले तो केवल
मीतों का गीत ही भाता है।
दर्द दिया लेकिन साझे को
दोस्त के दिल को बढ़ा दिया -
विधि अद्भुत प्रेम पंच की
विधाता तू ही -
मेरी रूह का अन्नदाता है ।
A personal expression of experience of love
No comments:
Post a Comment