पच्छ्तर (७५) साल हुए -
अंग्रेजों से आज़ादी के
भारतीयता किंतु क़दीम है
आत्मीयता से परिपूर्ण
निर्भीक, निर्भेद संस्कृति
वासुदेव कुटुम्बकम की प्रतीक सदा
रूह स्वच्छंद भारत की
कल थी, आज भी और रहेगी कल
पुश्तों के आवागमन से परे
गणतंत्रता की गणना में शुमार से क़बल
स्वतंत्र भारत की आत्मा
असीम और अज़ीम है ।
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