Friday, February 06, 2009

बेटा आप कल हो हमारा

बेटा आप कल हो हमारा 
और हमारे अतीत की पहचान 
तुम्ही से,
मेरा मान सम्मान तुम्ही तो 
मेरा अति अभिमान भी तुम हो -
सो संभालना खुद को.

जीवन मार्ग नहीं आसाँ,  
जटिल है -
तुम चलना यूँ कि 
स्थिर क़दम हो और नज़र भी 
मिले भूत को शीतल छाओं 
तुम्ही से 
भविष्य बन बलिष्ठ खड़ा हो 
सक्षम, संयम सी नींव पर.... 
बेटा आप कल हो हमारा.

जो अब पूछो हक़ से -
क्या चली थी मैं भी 
इसी अदा से?
तो भरपूर हुंकार भरूंगी 
पुरखों, वेदों से सार निचुड़ कर 
धरा जीवन की लांघ चली थी 
फिर जब शरीर हो पड़ा 
था दुर्बल 
नैया गृहस्थ जीवन की 
खींच बढे हम 
नहीं सरल था 
पथ ये दुर्गम 
मेरे आतुर व्याकुल मन को 
तब भी 
भरपूर जीने की 
सीख मिली थी. 

अब जो धूमिल 
हो पड़ी है काया 
नहीं बची आशा आकांक्षा 
ह्रदय ज्वाला भी शेष नहीं अब 
नियति का क्या है ठिकाना 
कब भाग्य के पन्ने पलटाये 
कब बेजान हो खाकी जा मिले
मिटटी से; 
हाड मांस का ढांचा निर्बल
जाने किस दिन 
जाने किस पल 
हो शेष ... 
जाने कब 
जाने किस दम। 

तो सोचा आज 
बतिया लूँ तुम से 
कह दूँ ये मामता के मोह में 
बस फूल सजे हैं 
तुम्हारी ज़िन्दगी के रस्तो पे  
कुछ यूंकि
सब कांटे तो हम बुहार चुके हैं 
चुन चुन इतना दूर परे की 
कोई मचलती ब्यार कभी 
ना उड़ा ला पाए 
तले तुम्हारे 
किसी कांटे की 
चुभन कभी भी। 

यथार्थ की गर सुनोगे तुम तो 
बेटा बहुत ही परे कथा है,
तुम अभी से ये मानो बेटा -
ज़रूर हवा बहेगी 
यौवन में बदमस्त बयार की 
फिर बदलेंगे रंगीन मौसम 
झुलसती, चिंघाड़ती लू कभी 
और कभी पुरवाई 
सावन की खुनक लिए 
फिर पतझड़ की खलिश लगेगी 
कोमल स्पर्श फूलों के होंगे 
पर चुभन से बचना कहीं नहीं है,
हर राही को 
अन्यास निश्चित ही 
चुभीले काँटों की चुभन मिलेगी 

तब तुम धीरज साहस रखना 
हर जीवन पक्ष में बेटा 
पुरुष बन चलना 
पौरुष से चलना 
बंधू भ्राता से नाता रखना 
क्यूंकि मोड़ नए कई होंगे 
जो फिसल पड़े तो हाँथ बढ़ेंगे  
उठ बढ़ने की मदद मिलेगी 
नित नयी राहों पे जब भी मुड़ना 
ये हिम्मत रखना 
हर डगर चलेगी 
वही मिलेगी 
जिस ठौर हर रूह पलटेगी. 

विद्वान वही 
जो समझे गुर 
इस खुश्क कभी 
कभी हरियाले सफर 
को अविचल सर करने का 
बस राज़ यही है -
धरम कर्म का सार यही है 
समयकोष से मिले पल ले कर
दिल की धड़कन को 
बना कर दिशा सूचक 
तुम निरंतर 
बेडर चल पड़ना 
इसलिए कि 
जिस सिमत भी क़दम 
बढ़ चलेंगे बच्चा 
पाओगे कि पूर्णविराम 
नहीं दूर पड़ा है 
चलते जाओगे 
तब ही तो पाओगे 
मंज़िल निकट 
कुछ पग और पास 
खड़ी है। 

बेटा मेरा अंश 
और शेष भी तुम 
आतमसम्मान, मर्यादा की परिभाषा तुम 
चाहत का ईमान भी तुम 
सो संभालना खुद को... 

बेटा आप कल हो हमारा। 




1 comment:

Unknown said...

soul stirring! keep it up sis.your poetry still manages to inspire me!