Thursday, March 21, 2013

कितने ही आधे अधूरों
को यूं ही जोड़ दिया तुमने
कि इक खली खिला
बरक़रार है दोनों के दरमियाँ
पूर्ण होने की प्यास बाकी है
और जो ये बतला दिया
कि मोजूद है एक अकेला
इस धरा पे
जिस से रूह का रिश्ता
परमात्मा के समीप होने का
प्रदीप्त साक्षी है,
तो प्रशन सुनो
अधीर बंदगी का -
क्यों नहीं बतला देते
एक ही बार
कि खालिक तुम हो
और ये राबता
तुम्हारी बेजुबान मुहब्बत का अक्स है
कलबे खिल्कत पे
तो दिलों की धड्कन को खनकने दो
भरपूर बेकसक
क्योंकि
तुम्हारी किताब में हर दिलबर का नाम दर्ज
साफ़ अमानत धरा है-
तो दे दो हर एक को वोह परम प्रीत
जिस के रब तुम्ही तो
दाता भी तुम्ही हो.

Jotted on 13.2.13

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