चलो ढूंढते हैं साथ मिलके
वोह राह जो गुज़रती है
आवारा बादलों से लिपटती है
और फिर लापरवाह सी ससरती है
सप्तरंगे इन्द्रधनुष से उतरती है
उस क्षितिज के आँगन में
जहाँ सुकून और साथ के सिवा
कुछ भी नही।
वोह राह जो गुज़रती है
आवारा बादलों से लिपटती है
और फिर लापरवाह सी ससरती है
सप्तरंगे इन्द्रधनुष से उतरती है
उस क्षितिज के आँगन में
जहाँ सुकून और साथ के सिवा
कुछ भी नही।
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