आक्रोश अग्नि है
प्यार पानी
जल जिलाता है
क्रोध मानवता का
अहसास धूँऐं में
उड़ाता है,
बारिश रेत या पहाड़
को अपनी निर्मलता से
यकसाँ गीला कर जाती है
आग अपने ताप में समां
हर शैय को भस्म
हर अस्तित्व निगल
खुद भी बुझ जाती हैै
यूँ तो हमारे संचार में
दोनों का योगदान है
बिन अग्नि जीना मुमकिन
पर बिन जल ज़िंदगी का
कोई ईमकान है?
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