रेलते हैं ख़्याल
कुछ सपने कई याद
दोनों की दस्तक,
निरंतर तकरार
मुझे समोने नहीं देतीं
अपने समस्त को
उस सागर में
जिस की असीमता में
सुकून का आभास है
तो या तो लहर रोक दो
या मुझे खींच लो
झूठे किनारों से परे
कि मैंने पाया है -
लहरें किनारों से
टकरा, उनपे ही अपना
दम तोड़ती हैं ।
No comments:
Post a Comment