Thursday, June 12, 2014

लहरों की तरह 
रेलते हैं  ख़्या
कुछ सपने कई याद
दोनों की दस्तक,
निरंतर तकरार
मुझे समोने नहीं देतीं
अपने समस्त को
उस सागर में
जिस की असीमता में
सुकून का आभास है
तो या तो लहर रोक दो
या मुझे खींच लो
झूठे किनारों से परे
कि मैंने पाया है -
लहरें किनारों से 
टकरा, उनपे ही अपना
दम तोड़ती हैं ।


No comments: