Monday, June 29, 2015

पराई

लक्ष्मी जब जन्मी थी
सूनी कोख सजी थी
स्वर सही कर्णों से टकराया थी
मुबारक!
पर तुमने पराया धन तो पाया है।

जब खेली घर प्रांगण में
यौवन छुपा आँचल में
हर चपल चरण की आहट पर
संसार ने यूँ चौंकाया था -
संभालो!
कि पराया धन मदमाया है।

लाली सिंदूरी जब सजा
ड्योढ़ी के बाहर पग धरा
जननी के आँसु बह निकले
मन ने बावरी मामता पे
यह कह बाँध लगाया था -
रो मत!
तु ने पराया धन ही तो गँवाया है।

Jotted down in 1989


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