कई दिलों को मैंने
है टूटते बिखरते देखा
मसलेहत के दीवार की आड़ लिए
प्यार के पथ से
पतली गली में सरकते देखा
कई एक चाहतों को
परवान चढ़ने से पहले
अहं की चट्टान से टकरा
रेज़ा हो के बिछड़ते देखा
तो जब अपने आँगन में
जमती दूब पे नज़र डाली
छेंक आँचल से घर के
गमले में सजा लाईं हुँ
वक़्त के बदलते मौसम के
थपेड़ों की ख़बर
भला किस को है?
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