ज़िन्दगी में ये तै कहाँ
बूरा वक़्त, मुसीबत, तुफ़ां
कब किस मोड़ पे आ दबोचे
ऐसे में उस बेपरवाह, बेवफ़ा
खेवैये का मन कयोंकर ऐतबार करे
जो पिछले तुफान में
दहलाती मौजों के दरमियाँ
डूबती नाव समेत
मुझे डूबता छोड़
पतवारों को तोड़
अकेला किनारों की ओर
तैर पड़ा था? -
चरित्रों की पहचान
इतनी कठीन भी नहीं।
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