Bइश्क़ है -
सो अहं को रेज़ा करने का
अज़म दिल में बसाए बैठे हैं
ज़र्रा हुँ -
सो बादे वक्त से
तुम बस ज़रा कह दो
हमें उन गलीयों कुचों की
गर्दो ख़ाक की नज़र कर दे
जहाँ तुमसे मिलने को
कई परवाने बढ़ते हैं
फिर क्या आसान हो पिसना
हर रहगुज़र की चापों से
किसी पाँव की धूल बन कर
मेरा मक़सद कुछ यूँ हल होगा
सेहर तक क्या कोई आशिक़
ना तेरे दर तक छोड़ेगा?
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