Wednesday, July 27, 2016

दर्द दस्तूर है दिलवालों का
ज़ख़्म खा के मरहम लगते हैं
हम तनहा उनके ख़यालों का!

कभी कभी लफ़्ज़ बेफ़ज़ूल होते हैं
ख़ामोशियों से भी अक्सर उनके पलट जाने के 
पैयाम दिल के दरवाज़ों पर
बिन दस्तक ही मोसुल होते हैं।


Friday, July 15, 2016

उसने कहा -
सुना है बारिश है तुम्हारे शहर में
ज़्यादा भीगना मत
धूल गयी सारी ग़लतफ़हमिया अगर
बहुत याद आएँगे हम।

तो फिर उस ने सुना -
यार जो बारिश से ग़लतफ़हमी धुलने की मोहताज हो
मेरे आँगन में नहीं उगती
हम ने शाम-ए-उलफ़त जलायी थी यहाँ 
रहमते ख़ुदा के चिराग़ों से लौ ले कर!

मेरा सच

मिलन बिछड़ के 
इस ड्रामा गेम में
शिकवे-शिकायतों, 
कहा-सुनी के अनंत 
सिलसिलों में
बस एक सत्य सुनिश्चित रहा -
तुम मेरे युसूफ़ हो।

Monday, July 11, 2016

Lo and behold
Bear witness - 
I've laid the wreathe again.

Monday, July 04, 2016

बहुत मंहगा है तुम्हारा सीना
निस दिन स्वाभिमान की सौग़ात माँगता है 
और अब जो ये पूँजी नहीं बाक़ी -
मैं फिर कोरे काँटों पे सो लूँगी।

Sunday, July 03, 2016

क्या यही प्यार है?

चला रफ़ाक़तों का जो सिलसिला
हमने मोहब्बतों की बात की
मेरे लब खुले तो उनके सिले
महबूब ख़ामोशियों में डूब गया
ख़ौफ़े विस्ल दिल को कुछ यूँ चढ़ा -
जो आशना था बना मेरा 
नाआशना सा हो गया!