सुना है बारिश है तुम्हारे शहर में
ज़्यादा भीगना मत
धूल गयी सारी ग़लतफ़हमिया अगर
बहुत याद आएँगे हम।
तो फिर उस ने सुना -
यार जो बारिश से ग़लतफ़हमी धुलने की मोहताज हो
मेरे आँगन में नहीं उगती
हम ने शाम-ए-उलफ़त जलायी थी यहाँ
रहमते ख़ुदा के चिराग़ों से लौ ले कर!
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