Saturday, July 01, 2017

रोशनी और रौशनाई


रोशनी और रौशनाई 
दोनों ही हैं धूमिल पड़ी  
युंकि --
पिछली बार जब चोट लगी
मन के क़लम को 
आँखों से बहती रौशनाई
ने बढ़ कर 
ढ़ारस दिलाई,
अबकी वार की गहराई से पर
रूठे हैं सारे शब्द
टूटी क़लम
सुखी स्याही है.

1 comment:

विश्वमोहन said...

वाह! अत्यंत मार्मिक!!!