रोशनी और रौशनाई
दोनों ही हैं धूमिल पड़ी
युंकि --
पिछली बार जब चोट लगी
मन के क़लम को
आँखों से बहती रौशनाई
ने बढ़ कर
ढ़ारस दिलाई,
अबकी वार की गहराई से पर
रूठे हैं सारे शब्द
टूटी क़लम
सुखी स्याही है.A personal expression of experience of love
1 comment:
वाह! अत्यंत मार्मिक!!!
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