Tuesday, October 01, 2024



जो अपना गुदवा कर आया था

भाई, सगा, संबंधी

और वो भी जिस ने समक्ष तुम्हारे 

जीने मरने की सौगंध में 

उमर भर कह के बांधा था,

एक हिचक भी ली ना किन्होंने 

मन लूट, कर सर्वनाश भरोसा 

रिश्तों को कटुता से काटा था ..,

क्या कमी रह गई थी 

उस पल में मेरे रोने 

तुम्हारे रूलवाने में 

भरपूर रक्तरंजित प्याले थे मेरे

घड़ा भर अश्रु बहाई मैं 

क्या सोच समझ तुम अब फिर 

मन में प्रीत जगाते हो

ढलते सूरज के आँगन में 

पूस के धूप की आस लगवाते हो! 

हास, रास, मगन ठिठोली

को सबीना ही मिल पायी 

साथ ख़राब से ऊँची आबादी 

कही और प्रेम प्रसंग सजाओ ना।

साथ तुम्हें नहीं देना मेरा 

फिर क्यूँ अनायास ही 

प्रेम प्रसंग अनजाने से करवाते हो?

एकाकीपन तुम्हें पसंद हमारा

हम ने भी ये तसलीम पिया 

लेकिन निष्ठुर बन छेड़ो ना 

किसी गाम से बंसी की तान पिया 

कानों में रस घुलवा

आकुल मन को करती है 

प्रिय मिलन को आतुर करती 

साथ जिया ये ढूँढे है।

थाम लिया देखो हिये को 

आँचल को समेत है बांध लिया 

अधूरेपन का एहसास लिए 

जी लेंगे 

तान दो हम पर गहरी चादर 

सो जाऊँ मन में 

यादों के मधुर संगीत लिए।




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