Wednesday, October 09, 2024

 

तुम जितना दोगे
उस से ज़्यादा की कोई माँग नहीं 
निभाने की क़सम मेरी थी 
तुमने तो कभी खाई ही नहीं
यूँ भी -
उन दस्त से क्या लेन देन की 
करें उम्मीद 
उल्फ़तो जुर्रत में है छिड़ी रहती 
जहां बेवजह तकरार;
मेरा माज़ी हमारे पाँव की 
ज़ंजीर भी है 
सब से बढ़ कर 
आप की सुनायी दी हमें 
कभी हाँ ही नहीं ।

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