हर रात हर दिन हर पहर
सरक रहे हैं पग -
किस ओर ये खबर नहीं
ना ही मकसद से मेल हुवा है
इस राह की तकदीर जो तुमने लिखी थी
बिन पूछे बिन बतलाये
जब बढ़ा चुके हो
तो मंजिल का निशाँ
भी मालूम करा दो
दोराहों पर अंक लगा दो
कि अँधेरा और आंसूं
देखने नहीं देते।
किस ओर ये खबर नहीं
ना ही मकसद से मेल हुवा है
इस राह की तकदीर जो तुमने लिखी थी
बिन पूछे बिन बतलाये
जब बढ़ा चुके हो
तो मंजिल का निशाँ
भी मालूम करा दो
दोराहों पर अंक लगा दो
कि अँधेरा और आंसूं
देखने नहीं देते।