सुन समझ रही थी
पर करने का सामर्थेय नहीं थी
जूटा पा रही
कर्मपथ दुर्गम और जो उस पर
थी मुश्किल से संभल रही
तो कहाँ घूंट उतरती
स्वयं शक्ति से
वो जो सामने विराग विष का प्याला
रखा था यूं कि पुनर्जनम के वास्ते
मरने की शर्त लगी थी
- तो फिर समक्ष
समर्पण के सिवा
क्या राह बची थी?
सो मैं ने मन छोड़ा
और तुम ने झट थाम लिया -
बस यही निदान था।
पर करने का सामर्थेय नहीं थी
जूटा पा रही
कर्मपथ दुर्गम और जो उस पर
थी मुश्किल से संभल रही
तो कहाँ घूंट उतरती
स्वयं शक्ति से
वो जो सामने विराग विष का प्याला
रखा था यूं कि पुनर्जनम के वास्ते
मरने की शर्त लगी थी
- तो फिर समक्ष
समर्पण के सिवा
क्या राह बची थी?
सो मैं ने मन छोड़ा
और तुम ने झट थाम लिया -
बस यही निदान था।
No comments:
Post a Comment