Monday, March 23, 2015

Exasperation

More than -
Seven billion ways
Crisscross one another 
Striving to attain
The seat of Oneness 
Where from You reign
Oh come spare me now
From wonder of how
Ascends that other 
Make my agilely traverse
One that's my very own. 

Sunday, March 22, 2015

Joyfully eccentric

I live in
World filled with those
vying to compete
to outdo the rest
in being seen -
Successful, sane and centred.

I open an eye
to peek
and glance
at tight medley and commotion,
charged by promise
of law of attraction
all endeavour 
to shun soothe of dark
tending to seek
glare of good and glorious alone. 

Driven by no goal
having no desire to make a mark
I stretch with yawn,
shut eyes to close
with languor and ease
I revel in beauty of the Whole
that lies within
when both light and dark
come together
to set glow and awaken;
in realisation of dawn
here I put down my sign
on card of gratitude
to say -
I am grateful and blessed
to be placed 
eccentrically in my parole!

Friday, March 20, 2015

There are many faces of love - 
the fairest is one 
where you just know 
it's there forever
to stay 
without having to say
or search for reason
its expressed 
bonded together with One
in being human.

Monday, March 16, 2015

अब क़दम थमते नहीं
हौसले थकते नहीं
राह की गहराईयाँ
वजूद की तन्हाईयाँ
क्यों कर क़दम उलझा सकें
ढ़लते उफ़क़ पे जो नजर गई
नित बदलते गुलाबी सायों में
तुम्हारे क़दर की छवी दिखी;
फिर मंज़िल का जबपता रहे
क्युं लापता से हम फिरें?

तुम ने भेजा था रूह लिये
कई क़तरे हैं आँसू के
कुछ किचड़ से भी मलिन हुऐ 
कोरे दामन को इन छींटों से 
कहां मैं कभी बचा सकी
बेशक समझ में देर हुई 
पर सुना पश्चताप की है 
ताप खरी - तो क्या
आशा की करूँ उम्मीद नहीं?

निर्बल, निश्छल, निर्भीक
चल पड़ी समझ बस राज़ यही
तुम से तुम तक आ 
फिर जाने का आदम की
प्रकिती से चार पहर का नाता है
रस्मों रिश्तों के परदे ने
अपने जाल में सब को बाँधा है।

सेहर सजी थी जब 
मेरे रूत की 
उरूज पे था उफान खड़ा
बेपरवाह मेरा सुरूर था
लेकिन वह पहर कटा  
थी दोपहर की धूप कड़ी, 
जिस्म तप व तपिश से चूर हुआ
रहज़न. राहगीरों से लूटता था
साँझ ढ़ले सब छोड़ चुके
खंडहरों में क्या बसता है!
हैं बिछड़ चुके सब हमसफ़र
जिन पे बेवजह मुझे सदा
हक़, गुमान और ग़ुरूर रहा।

०इस रहगुज़र पे मेरे रब
बस तेरा मेरा साथ है अब
इसी यक़ीन पे साहस कर
मैंने निगाह और सर उठाया है, 
कुछ चिराग़ जो दूर टिमटिमा रहे
तुम्हारी क़ुदरत ने ही 
तो झलकाया है,
थोड़ी उनकी लौ को और 
अपनी रौशनी से हयात दे दो,
बड़ी मुश्किलों से मेरे खुदा 
मैने टूटे दिल को ज़िदगी के
अंधेरों में बिखरने से बचाया है 
मंज़िल देखो है क़रीब दिखे
इस ठौर क़ल्ब फिर कैसे टिके
ज़रा कुन-फ़यकून की फूँक तो दो 
कि साँस को दम और आस मिले
कुछ युं कि बस 
हम यूँ चले और युँ मिले
पकड़े तुम्हारी रज़ा की डोर  
हर राज-रास से मूँह को मोड़ 
तुम्हारी अमानत पहुँचाने को
अपनी जान लिये हम आते हैं।





 

Saturday, March 14, 2015

जाने क्या मैंने सुनी

लफ़्ज़ जो लब की जुम्बिश से
कानों पे सजा करते थे
अब साँस से 
ईमान की हरारत के
हैं तलबगार बने - 
दिल की धड़कन जब
लहू की गर्मी का अहसास  
देने से लाचार रहे -
तो बेहतर है ख़ामोशी के
चिलमन की परत खिंची रहे, 
कि सुना है जब सिले लब 
तब कहीं जा के
क़ल्ब में हक़ीक़तों के
मृदंग बजे!

Thursday, March 12, 2015

इक तुफान है
उधेड़ता, उजाड़ता
कई पहचान को तारता
विधाता - किधर का
इरादा है?

Wednesday, March 11, 2015

I am grateful that I am
I am grateful that You are
I grateful that between 
You and me
Expressions are felt
Not seen. 

Monday, March 09, 2015

i won't ask why

I am letting go
of whys in my life
no answer is worth the query
when all is meant
to deliver
i to I.

Thursday, March 05, 2015

हम से तुम से 
ही चल रहा है
सिलसिला प्यार और पहचान का -
पहचान पहले अपने ख़ुद से
फिर प्यार सब के
एक खुदा और रब से।