कानों पे सजा करते थे
अब साँस से
ईमान की हरारत के
हैं तलबगार बने -
दिल की धड़कन जब
लहू की गर्मी का अहसास
देने से लाचार रहे -
तो बेहतर है ख़ामोशी के
चिलमन की परत खिंची रहे,
कि सुना है जब सिले लब
तब कहीं जा के
क़ल्ब में हक़ीक़तों के
मृदंग बजे!
A personal expression of experience of love
No comments:
Post a Comment