A personal expression of experience of love
धार कोई और कहाँ यहाँ-
रब इकलौता स्रोत मात्र है,
और ये मन कोरा, केवल
है दरवेशी का ख़ाली कूजा;
पाने को हर पल
ललक ललक प्रभु प्रसाद
का प्रार्थी है।
रे मनक्यों भटके सुकांतरब तेरे अबवहीं मिलेंगेजहां जहां एकांत!
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1 comment:
रे मन
क्यों भटके सुकांत
रब तेरे अब
वहीं मिलेंगे
जहां जहां एकांत!
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