Saturday, October 08, 2022

ठान

साहिल पर पलटती लहरों के संग
पैरों तले 
रेत खिसक रही थी 
और मैं बस ठान खड़ी थी
स्थिर चाहे ना सही 
मेरी भूमि तो यही है.

This was jotted down on the shores of Arabian Sea on 3rd December 2012. Much water has crossed under the bridge.

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