जब रूह मेरी जुदा हो
जिस्म बेजान हो पड़ा हो
मेरे बच्चों संभाल लेना
मेरी बेजान काया
बड़े सब्र से है निभाया
साथ इसने जीवनी की
हर रहगुज़र पर।
तन को नहा के सुथरा
सफ़ेदी से ढाँप देना
इस रंग को था अपनाया
मेरे मन ने व्यथा में
यूँ दामन में रंग कई सिमटे
उत्सुकता ने निहारा
पर सुकून हुआ मुयसर
फ़क़त चाँदनी की
श्वेत रिदा में।
फिर उस जमीं को सौंपना
जिस के अहसास में तरी हो
मज़बूत पेड़ के साये
लिपटे रहें कब्र से
फूलों के हुस्नो बू से
मेरी फ़िजा सजा देना
यूँकि परवाजते परिंदों
को बेसाख़्ता ख़बर हो
कि रब की क़दरो रजा से
जो बस्ती है याँ सबीना
हर दिल को ये यक़ीं हो
मुहब्बतों वफ़ा का पैकर रही
वो दम भर
सो सहां रब की अमां है
चहकें वो ये कह कि -
आओ थोड़ा थम लें
दम लें और गुफ्तगू कर
बेलौस मुहब्बत से
दिलों जाम भर लें
18.7.17
No comments:
Post a Comment