Friday, September 16, 2011

mahabharat



मित्र,
बिछी तो है आज भी
बिसात महाभारत की-
हमारे युग के रंगमंच पर भी
किरदार नव नवीन कई
झलक दिखलाते पात्र कहीं
कोई युद्धिष्टिर बना परिहास उडवाता
अपने धरमराज कहलाने की
कि माया लिप्सा में लुप्त
अपनी द्रौपदी के मान संहार की
घोर पीड़ा से वियुक्त
विमुख रहे.


हैं यही कहीं
दुर्योधन
नकुल, सहदेव, वीर अर्जुन
बलिहार भीम भी प्रतिम्बिबित नज़र आ जाते
कभी काल के किसी पृष्ठ पट पर -
सभी निभाते जा रहे भूमिका
यूँ जिस तरह
हुवे नियुक्त
अपनी नियति के कर से,
मगर -
मेरी नज़रें नहीं ताड़ पा रही
उस अकेले को जो
सम्पूर्ण महाभारत की रूह है.

परमवीर करमवीर
कर्मयोधा मेरा कर्ण -
इस युध्ह के कोलाहल में
तुम्हारी सचेत आत्मा
मानवीय मूल, वचनबद्धता,
मैत्रिये, मर्यादा के फूल
किस ठौर ढके
कहाँ गुम है?

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