Monday, September 12, 2011

dil ki syahi


तो तुमने फिर से लिखना शुरू कर दिया
क्या कुछ और स्याही बची है अब भी
दिल की खाली दरारों के बीच
जिसे सोख
कर अब भी
मन में जीने का हौंसला बाकी हैं?

हाँ कहा मन ने
एक बार फिर अन्तराल में
कविता जाग उठी जो दीप बनी
करती रहती झिलमिल -
दिल की गलियां हैं रोशन
तो इसी प्रकाश से 
वरना इन् हथेंलियों ने 
केवल अंधकार बिटोरा है.

No comments: