तो तुमने फिर से लिखना शुरू कर दिया
क्या कुछ और स्याही बची है अब भी
दिल की खाली दरारों के बीच
जिसे सोख
कर अब भी
मन में जीने का हौंसला बाकी हैं?
हाँ कहा मन ने
एक बार फिर अन्तराल में
कविता जाग उठी जो दीप बनी
करती रहती झिलमिल -
दिल की गलियां हैं रोशन
दिल की गलियां हैं रोशन
तो इसी प्रकाश से
वरना इन् हथेंलियों ने
केवल अंधकार बिटोरा है.
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