शाम के सन्नाटों में
चिड़ियों की चहचहाहट के दरमियाँ
एक आवाज़ सुनी थी
जो कर्मपथ पे अग्र्सर होने को
ढकेल रही थी
एक के प्यार को
कईयों में
विसर्जित करने को
ललकार रही थी
ठोड़ी पकड़ झूकी पलकों को
पुचकार रही थी
यूं कह-
कर्म योधा अब सुन चित से
इस ध्वनि में तेरे विधाता के
शंख की ललकार है.