Friday, December 11, 2015

बिखरी हूँ
फैले हुवे इन किर्चों को संभालो ना कोई
टूटी सही पर जान तो बाक़ी है ना अभी 
किताबों से दवाओं के नाम 
तुमने क्या ख़ूब रटे हैं 
कईयों के इलाज तुमने बहुत बख़ूबी भी किए हैं
हो मेरे भी अाशना
लो आशनाई की क़सम दी
क्या कहने जो बीमारी में 
शफकत का भी हो जाए बदल कोई
बेशक हर दामने उम्मीद मेरे हाथों से छुड़ा लो
मगर मरीज़ को तब्दीले दवा की पहले तो ख़बर दो
भटकी हुँ 
मंज़िल की कशिश मगर अब भी है दिल में
चलने का अज़म हुँ ले के खड़ी मैं
वो हाथ जिसे मेरे रस्ते की ख़बर हो
उसे मेरी जानिब लिये वो साथ बढ़ा दो
ज़िंदा हुँ सनम
गोरो कफ़न में क्युं बाँध रहे हो
बहते हुअे लहु की रफ़्तार से अनजान सही तुम
साँसों की तपिश की तो तुम्हें ख़ूब ख़बर है
माज़ूर जिस्म मेरा है
मायूस हैं राहें
ठोकरों से मेरे दिल को अब मैय्यत ना बना दो।

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