तुम ने बरसों पहले अलमारी में झाँकने की ज़िद की थी
अब के बरस हम ने दिल चीर के
तुम को हर कोना बिना तलाशी वॉरंट दिखलाया तो क्या हासिल?
ना तुम बदले
ना तुम्हारा अहसास
हर ज़ख़्म मेरा तुम्हारी मूसर्रत का सामान था -
मरहम तो दूर रहा,
मजबूरी तुम्हारी मुहब्बत का नया नाम बना!
अब के बरस हम ने दिल चीर के
तुम को हर कोना बिना तलाशी वॉरंट दिखलाया तो क्या हासिल?
ना तुम बदले
ना तुम्हारा अहसास
हर ज़ख़्म मेरा तुम्हारी मूसर्रत का सामान था -
मरहम तो दूर रहा,
मजबूरी तुम्हारी मुहब्बत का नया नाम बना!
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