Sunday, March 19, 2017

फिर सुबह हुई है
एक और दिन मिला
जीने और अहसास करने 
ये कि
गिर्द चमकते भुलावों, 
रिवाजों, उसूलों की टीपा तापी से 
अधिक बहुमूल्य है 
मन की कसक 
अपनी प्यास समेटे 
जो सृष्टि के सपाट कैन्वस पे
मेरे अस्तित्व की पहचान है;
हर अवहेलना से बालातर
रहूँ स्थिर यहीं 
कि मैं हूँ जहाँ
यहीं मेरा वजूद 
मेरा कर्म स्थल है।

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