फिर सुबह हुई है
एक और दिन मिला
जीने और अहसास करने
ये कि
गिर्द चमकते भुलावों,
रिवाजों, उसूलों की टीपा तापी से
अधिक बहुमूल्य है
मन की कसक
अपनी प्यास समेटे
जो सृष्टि के सपाट कैन्वस पे
मेरे अस्तित्व की पहचान है;
हर अवहेलना से बालातर
रहूँ स्थिर यहीं
कि मैं हूँ जहाँ
यहीं मेरा वजूद
मेरा कर्म स्थल है।
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