कई भावनाओं का अज़्म लिए
बढ़ते है मुसाफिर
चुनिंदा मंज़िल की ओर,
उल्फत, मुहब्बत, इश्क़, आश्नाई
सभी की चाहत से रोशन है
चुनिंदा मंज़िल की ओर,
उल्फत, मुहब्बत, इश्क़, आश्नाई
सभी की चाहत से रोशन है
उनकी अपनी तनहाई
और मैंने अपनी सच्चाई
बस तुम्हारे वजूद में विलींन
होने क़ी कसक में ही पाई।
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