कभी आँख ना मिलाना
कि दिल का ये मर्म स्थल है
नेत्र से चले हथियार पिघला देते है
उठती चढ़ती सांसों को बहका देते हैं
पलक झपकने से पहले
कर देते हैं ये घायल,
सो लो संभल
ज़रा जो तू बढ़ा चपल
प्रीत के शीत को पाने को उत्छल
कर देते हैं ये घायल,
न नयन मिला
पलकों की चादर तान ज़रा
ये प्रीत मह्ज़ भुलावा है
कि दिल का ये मर्म स्थल है
नेत्र से चले हथियार पिघला देते है
उठती चढ़ती सांसों को बहका देते हैं
पलक झपकने से पहले
कर देते हैं ये घायल,
सो लो संभल
ज़रा जो तू बढ़ा चपल
प्रीत के शीत को पाने को उत्छल
कर देते हैं ये घायल,
न नयन मिला
पलकों की चादर तान ज़रा
ये प्रीत मह्ज़ भुलावा है
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