प्रिये -
आंख खुली जो बिस्तर पे
भयावह स्वपन था मन को दहला गया
सहस बढे चले थे हाथ
तुम्हे चेताने
तुम्हे चेताने
जब यथार्त ये समझा गया -
कल तुम थे आज नहींमेरा सिरहाना तनहा है,
अब सूखे या सैलाब से
कोई आड़ नहीं इस जीवन में
ये ख्याल बस
बिन जल मछली सा
समूचे अस्तित्व को तड़पा गया.
समूचे अस्तित्व को तड़पा गया.
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