खुद को तुम्हरी नज़रों से पहचानने की लगन में
खो गए कुछ यूँ सनम
कि खुद को पाने की जब हुई फ़िकऱ
फेरी निगाह, खुद पे धरी नज़र
तो पाया
गुज़रता वक़्त धूमिल कर चला था
दृश्य और दृष्टि दोनों ही पड़ रहे हैं कम
अस्तित्व सँभालने को नहीं हम सक्षम -
गुज़रता वक़्त धूमिल कर चला था
दृश्य और दृष्टि दोनों ही पड़ रहे हैं कम
अस्तित्व सँभालने को नहीं हम सक्षम -
सो जाते जाते मुझ से मेरी पहचान करा दो.
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