It is 12:50 now.... early hours of morning, late hours of night. I have woken up with this number playing in my head:
https://youtu.be/GXgKgZt9Jik?si=8-sEMwjZSD97KInU
जाने कैसे, कब कोई
दिल के इतना क़रीब होता है
अनजान से किसी मासूम मुलाक़ात में
जाने क्यों -
मन अपना वजूद खोता है!
This is the precise summary of how I lost myself in his eyes. Unreal, unbelievable...more importantly will it last? Can only chant Gayatri mantra and cope with transience that manifests everyday in life.
छुपा ली मन में ये प्रीत तेरी
हो जैसे मंदिर में लौ दिये की।
आँच बिरहा की सह चुकी हूँ
ख़ाक हो चुकी है मन की बाती
राख बन कर अब क्या जलेगी
रहे जो बाक़ी
तो है काफ़ी साक़ी
विभूति शृंगार बन सजेगी
ये राख कुछ कम ज़रा नहीं है
पाकीज़ा लौ थी, पाकीज़ा ज्योति
अंधेरे कूचों में जल पड़ी थी
ज़रा जो दम भर डगर थमी तो
बुझती बाती धधक गई थी !
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